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मनुष्य की आत्मा पर धर्म का रंग चढ़ाना चाहिए-मुनिश्री विनय सागर

 ग्वालियर:-



48 दिवसीय भक्तामर विधान में गूंज रही भगवान आदिनाथ की आरधान।

भक्तामर विधान में सगीतमय भजनों की भक्ति में भक्तगण लग रहे है डुबकियां।

ग्वालियर-: धर्म करने से पहले और धर्म के करने के बाद हमारे व्यवहार में स्वभाव में बदलाव आए तो समझना धर्म का असर हुआ है। कैमरा के लेन्स में अगर मिट्टी लगती है तो तस्वीर साफ सुंदर नहीं आती वैसे ही धर्म क्रिया शुद्ध नहीं होगी तो आत्मा हमारी शुद्ध नहीं होगी। मनुष्य की आत्मा पर धर्म का रंग चढ़ाना चाहिए। यह बात श्रमण मुनिश्री विनय सागर महाराज ने 48 दिवसीय श्री भक्तामर महामंडल विधान के पांचवें दिन रविवार को माधवगंज स्थित चतुर्मास स्थल अशियाना भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।



मुनिश्री ने कहा कि जीवन के अंदर यह निरीक्षण करना अत्यावश्यक है कि धर्म क्रिया के बाद हमारे में बदलाव क्या आया? वैसा ही क्रोध - वैसी ही माया वैसा ही स्वभाव अगर परिवर्तन नहीं होता है तो समझना आज तक हमें धर्म का योग हुआ है प्रयोग नहीं हुआ। दवाई जेब में रखने से नहीं चलता उसका प्रयोग भी करना पड़ता है तभी शरीर में से रोग जाता है, वैसे ही आत्मा में लगे कर्मों को भगाना है तो मात्र धर्म क्रिया तक सीमित नहीं रहना है अपितु धर्मक्रिया को आत्मसात करना है। हमारे रोम रोम में धर्म होगा तभी संसार के परिभ्रमण अंत होगा। हमारी स्थिति हाथी के जैसी है।


*भक्तामर विधान में श्रीजी हुई शांतिधारा, भक्ति से चढ़ाये मढ़ने पर महाअर्घ्य*


जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि मुनिश्री विनय सागर महाराज ने मंत्रो से भगवान आदिनाथ का अभिषेक इंद्रो ने पीले वस्त्र धारण कर कलशों से जयकारों के साथ किए। मुनिश्री ने मंत्रो का उच्चारण कर शांतिधारा चक्रेश जैन व जितेंद्र जैन ललितपुर परिवार ने की। मुनिश्री के पादप्रक्षालन एवं शास्त्रभेट मुन्नीदेवी संदीप जैन परिवार मुरैना ने किए। विधानचार्य विजय कुमार जैन व ज्योतिचार्य हुकुमचंद जैन ने भक्तामर के 48 ऋद्धि सिद्धि महाकाव्यों मंत्रों के उच्चारण के साथ विधान कर्ता जितेंद्र जैन चक्रेश जैन परिवार सहित अन्य श्रद्धालुओं ने अष्ट्रद्रव्य से पूजन  कर भजन सम्राट शुभम जैन सैमी के भक्तिमय स्वरों के साथ भगवान आदिनाथ के समक्ष भक्तामर मढ़ने पर श्राद्ध भक्ति से साथ समर्पित करें।


*जुनून हमें भगवान की भक्ति में रखना होगा।*


मुनिश्री ने कहा कि जो लोग संयम के मार्ग पर चलते हैं सरल स्वभावी होते हैं वह निरंतर प्रगति को प्राप्त करते हैं। हमें कर्मप्रधान होना होगा। कर्मों की प्रधानता ही व्यक्ति को महान बनाती है। कर्म किये जाओ, फल की चिंता मत रखो, कर्म अच्छे होंगे तो फल भी अच्छा ही मिलेगा  जुनून हमें भगवान की भक्ति में रखना होगा। मोक्ष मार्ग में लगाना होगा। तभी जाकर हमारा मार्ग प्रशस्त होगा।जिस प्रकार बीज को सही समय पर बोने, उचित देखरेख करने, सही समय पर काटने पर उचित लाभ मिलता है  मंदिर जब छोटा लगने लगे तो उसे तत्काल बड़े मंदिर में परिवर्तित करना आवश्यक होता है। क्योंकि व्यक्ति के मन में धर्म की भावना मंदिर पहुंचने के उपरांत ही आती है।

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