मोहन का कद बढ़ाकर क्या उनकी हद भी बढ़ाएगी भाजपा
आलोक एम इन्दौरिया
ग्वालियर:-
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का जिस तरह से भाजपा ने हाल ही में शनै शनै उनके राजनीतिक कद में इजाफा किया है उससे भाजपा के अंदर खाने में भारी हलचल मची हुई है । भाजपा के अंतपुर में हर एक की जुबान पर यही जुमला तैर रहा है की क्या जिस तरीके से पार्टी ने मध्य प्रदेश के प्यारे मोहन का राजनीतिक कद बढ़ाया है क्या उसी तरह से उनकी हद यानी राजनीतिक हदों को भी बढ़ाएगी ? क्योंकि जिस तरह से उन्हें अला कमान यानि मोदी और अमित शाह की जोड़ी लगातार उत्तर प्रदेश ,बिहार ,झारखंड और अभी हाल ही में हरियाणा में हालिया वक्त में प्रस्तुत कर रही है उससे तो राजनीतिक हल्कों में यही संदेश जा रहा है। यानी प्रदेश से उन्हें निकाल कर राष्ट्रीय परिदृश्य में एक ऐसे बड़े यादव नेता के रूप में स्थापित करने की कवायद जारी है जो देश के यादव समाज मे भाजपा का धनी धोरी बन सके। इसका सीधा प्रभाव प्रदेश के उन बड़े नेता के राजनीतिक कद पड़ेगा खासकर जो पिछड़े वर्ग के सर्वमान्य नेता है जिनके सिमटने का अघोषित खतरा पैदा हो गया है बेशक कोई कुछ कहे या ना कहे।
मध्य प्रदेश के साथ-साथ भाजपाई राजनीति में सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री का खिताब शिवराज के नाम दर्ज है और मध्य प्रदेश से उन्होंने सारे देश में अपनी अलग राजनीतिक पहचान भी स्थापित की ।बेशक उन्होंने अपने समानांतर किसी को खड़ा नहीं होने दिया और ना ही नया राजनीतिक नेतृत्व पनपनै दिया। मगर इसके बावजूद भी उन्हें प्रदेश मे भाजपा को बंपर सफलता दिलाने के बाद भी मखमली विद्या लेनी पड़ी और आला कमान ने उन्हें दिल्ली के कृषि मंत्रालय में स्थापित कर दिया। नेता चयन के दौरान उनकी जगह पर पिछली पंक्ति में बैठे मोहन यादव को एकाएक मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में घोषित करवा दिया गया ।और उन्होंने राजपाट संभाल कर शासन भी शुरू कर दिया। खांटी संघी और विद्यार्थी परिषद में देश भर में सक्रिय रहे मोहन पर पर्ची वाले मुख्यमंत्री का टैग जरूर लगा मगर उन्होंने बड़े सधे कदमों से अपनी पारी शुरू की । अभी 1 साल भी नहीं हुआ मगर सता की क्रीज पर वह एक अनुभवी बल्लेबाज की तरह जम गए ।उन्होंने धीमी गति से क्रीज पर खेलते हुए लोकसभा चुनाव कराए और पहली बार 29 में से 29 सिम जीती जो एक करिश्मा से कम नहीं है ।हालांकि इस जीत में शिवराज की योगदान को नकारा नहीं जा सकता मगर क्योंकि नेता के तौर पर मोहन हीआगे थे इसलिए क्रेडिट उन्हीं के खाते में गई। खैर खरामा खरामा मोहन ने सता सूत्र संभाले और बेहद पेशेवराना अंदाज में प्रशासन की लगाम खींचना शुरू कर दी। कानून व्यवस्था, उद्योग ,व्यापार, स्वास्थ्य समेत रेवेन्यू जैसे हर मोर्चे पर नवाचार और काम में तेजी लाने का प्रयास किया। बिजनेस कौन क्लेव के माध्यम से प्रदेश में जिस तरह से निवेश वास्तविक रूप में आकर्षित होना शुरू हुआ ये मोहन राज की बहुत बड़ी सफलता कहलाएगी क्योंकि बेरोजगारी वह मुद्दा है जिस पर प्रदेश नहीं देश की भाजपा भी परेशान है ।कानून व्यवस्था भी ठीक होना शुरू हो गई अलवाता बलात्कारों पर लगाम नहीं कर पा रही है यह अलग मसला है ।
दरअसल बीजेपी मध्य प्रदेश के मोहन से दो काम लेना चाहती है एक तो मुख्यमंत्री के रूप में और दूसरा बीजेपी का सर्वमान्य स्टार यादव नेता के रूप में ।हम यदि देश के राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो प्रतीत होता कि उत्तर प्रदेश और बिहार जहां सर्वाधिक लोकसभा सीटें हैं ,यादव समाज बेहद ताकतवर है और वह भी सभी तरह से। राजनीतिक ,आर्थिक, सामाजिक रूप से वह इन दोनों जगह में न केवल सक्षम है बल्कि समृद्ध भी है। भाजपा के साथ समस्या यह है कि वह एक भी ऐसा नेता यादव समाज का तैयार नहीं कर पाई जो मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार ,झारखंड ,राजस्थान हरियाणा जैसे प्रदेशों में यादवों के बीच जा सके ,यादवों के बीच पहचान बना सके और उन्हें भाजपा के झंडे के नीचे ला सके। जिस तरह मुलायम सिंह और उसके बाद अखिलेश ,लालू और उनके बाद तेजस्वी अपने पिता के यादवी साम्राज्य को बचाए हुए हैं वैसा एक भी नेता भाजपा के पास नहीं है यह कटु सत्य है।
जहां तक मध्य प्रदेश के मोहन का प्रश्न वह न केवल बेहद पढ़े लिखे हैं ,तमाम डिग्रियां उनके पास है ,बल्कि भाषण देने की कला में भी उनका जवाब नहीं है ।।व्यक्तित्व उनका आकर्षक और शानदार तो है ही शिवराज जैसी सहजता और विनम्रता के भी धनी है। जिस नेता के पास यह चीज होती है वोटर उसे सीधा कनेक्ट होता है ।और शायद इसी खूबी को मोदी शाह की जोड़ी ने पहचाना और इसी के चलते पहले यूपी ,बिहार लोकसभा में उन्हें चुनावी जवाबदारी दी ।अभी झारखंड में भी उन्होंने उड़ान भरी मगर उनके सबसे ज्यादा अच्छे नतीजे हरियाणा के विधानसभा चुनाव में आए। जहां उन्होंने जितनी सीटों पर प्रचार किया था उसकी सफलता का रेट 75% था। यानी भाजपा जिस यादव नेता को ओबीसी प्लेटफार्म पर तलाश रही थी वह उसे मिल गया । उनकी इसी सफलता के चलते अमित शाह के साथ मध्य प्रदेश के मोहन को हरियाणा का पर्यवेक्षक बनाया जो एक बड़ी सम्मानजनक जिम्मेदारी थी ।एक स्टार कैंपेनर के रूप में मध्य प्रदेश के मोहन ने भाजपा की हरियाणा में हैट्रिक लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके चलते पार्टी में और पार्टी ने उनके कद में हिज़ाफा कर दिया। और वह अब प्रादेशिक से राष्ट्रीय स्तर के नेता हो गए। भाजपा उन में राष्ट्रीय स्तर का एक यादव नेता देख रही है और उन्हें इसके लिए तराशभी रही है। दरअसल उत्तर प्रदेश में लगभग 20% के आसपास और बिहार में 17% के आसपास यादव आबादी है भाजपा अब इन पर फोकस करना चाहती है वह भी मोहन के माध्यम से ।बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव है जिसके चलते मोहन को एक ताकतवर भाजपा यादव नेता के रूप में चुनावी अखाड़े में उतार कर यादव वोटो को भाजपा के पक्ष में लाम बंद करने का प्रयास किया जाएगा। मोहन लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार और उत्तर प्रदेश के दौरे करते रहें और एक यादव नेता के रूप में यादव बिरादरी ने बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश में उन्हें थोड़ा-थोड़ा स्वीकार करना भी शुरू कर दिया है। इसलिए उनके कद बढ़ाने के साथ भाजपा ने उनकी हदें बढ़कर उन्होंने पंख दिए ताकि वे भविष्य में बिहार के स्टार कैंपर बन सके। हाल ही में पीएम मोदी ने मध्यप्रदेश के लिए जो करोड़ों की राशि रिलीज की है वह इस बात का धोतक है कि दिल्ली दरबार में एक यादव नेता के रूप में मध्य प्रदेश के मोहन का न केवल वजन और कद बड़ा है बल्कि उनकी एहमियत भी अब बहुत बढ़ गई है । हालांकि एक यादव नेता के रूप में स्थापित होने में उन्हें समय जरूर लगेगा मगर स्थापित होते ही वे लंबे समय तक भाजपा में यादव समाज के एक बड़े नेता के रूप में पूंजी बने रहेंगे इसमें संदेह नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है)
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