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कंगना का विरोध मांगता है नया शोध

ग्वालियर:- @ राकेश अचल


कंगना रनौत खुशनसीब हैं कि हमारे जैसे लोग उनके बारे में लिख रहे है. लिख इसलिए रहे हैं क्योंकि वे एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुनकर संसद तक पहुंची हैं और इस बात का प्रतीक बन गई हैं कि वे रजतपट पर तो अपना सिक्का जमा सकती हैं लेकिन देवभूमि कहें या किन्नर प्रदेश हिमाचल की जनता पर नहीं.

कंगना सांप्रदायिक राजनीति की लक्ष्मीबाई हैं जो काठ के घोडे पर बैठकर असली झांसी की रानी होने का झांसा देना जानती हैं. हिप्र के मंडी संसदीय क्षेत्र से वे जीती या जिताई गयीं,( मुझे नहीं पता )किंतु  गुरुवार को हिमाचल प्रदेश के मनाली में बारिश प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने पहुंचीं कंगना को जनता के विरोध का सामना करना पड़ा। वहां पर लोगों ने ‘कंगना वापस जाओ, तुमने देर कर दी’ जैसे नारे लगाने लगे। कुल्लू ज़िले में मनाली के पतलीकुहल क्षेत्र में कंगना रनौत के दौरे के ख़िलाफ स्थानीय लोगों द्वारा नाराज़गी जताए जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

इस वीडियो में स्थानीय लोग कंगना रानौत के काफिले के पास काले झंडे लिए नारे लगाते नजर आते हैं। कंगना के साथ पहुंचे भाजपा नेताओं और अन्य लोगों ने जब लोगों को शांत करने की कोशिश की तो तीखी बहस भी हुई और शांति बहाल करने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। कुल्लू और मनाली में 25 और 26 अगस्त को कई स्थानों पर भारी बारिश के कारण भूस्खलन हुआ और अचानक बाढ़ आ गई। इसके बाद ब्यास नदी की तेज धारा में एक बहुमंजिला होटल और चार दुकानें बह गईं।मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग और मनाली-लेह राजमार्ग के कई हिस्से बह गए.

कुल्लू शहर, बस स्टैंड और बिंदु ढांक को जोड़ने वाले मनाली के राइट बैंक रोड को भी भारी नुकसान पहुंचा है। कुल्लू के रामशेल क्षेत्र में एक मकान क्षतिग्रस्त हो गया, मनाली के पास 14 मील क्षेत्र में घरों में पानी घुस गया तथा पतलीकुहल में नदी-नालों के उफान पर होने से एक मछली फार्म क्षतिग्रस्त हो गया।

कंगना ने विरोध के बावजूद मनाली उपमंडल के सोलंग और पलछन के आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया, प्रभावित लोगों से बातचीत की और स्थिति का जायजा लिया। मै कंगना के अभिनय का प्रशंसक हूँ, लेकिन उनके राजनीतिक अभिनय से मुझे कोई सरोकार नहीं है. वे मेरे सबसे छोटे बच्चे की उम्र की हैं लेकिन सिनेमा की दुनिया में उनकी पहचान है. एक अलग पहचान।

कंगना रनौत को  हिन्दी फिल्मों से जो प्रसिद्ध  मिली वो राजनीति से मिली शोहरत के मुकाबले बहुत कम है. राजनीति ने उन्हे आरोपों के अलावा सरे आम थप्पड भी दिलवाए हैं. फिर भी कंगना ने मैदान नहीं छोडा.कंगना महिला प्रधान फिल्मों में मजबूत इरादों वाली, अपरंपरागत महिलाओं के चित्रण के लिए जानी जाती हैं. मुम्बई की चकाचौध उन्हें कम लगी तो वे राजनीति के ग्लेमर का शिकार हो गई. भाजपा ने उन्हे लपक लिया और पिछला आम चुनाव लडाकर हिमाचल में एक सीट हासिल कर ली।

मुझे स्मरण है कि वर्ष   2014 में आई फिल्म ' क्वीन '  में अपने जोरदार अभिनय के कारण कंगना को बॉलीवुड की क्वीन भी कहा गया. वर्ष 2019 के लिए 67 वे फ़िल्म पुरुस्कार हेतु मणिकर्णिका ओर पंगा फ़िल्म के लिए कंगना राणावत को सर्वश्रेस्ठ अभिनेत्री पुरुस्कार दिया गया। इन्हे पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। रनौत ने त्रिभाषी बायोपिक फिल्म तलाइवी में राजनेता जयललिता की भूमिका और इमरजेंसी में श्रीमती इंदिरा गांधी की भूमिका भी निभाई, लेकिन लोगों ने उन्हें न जयललिता माना और न इंदिरा गांधी जैसा. लेकिन वे दो घोडों पर सवार हैं. वे न मुंबई की सगी बन पाईं न मंडी की. भाजपा उन्हे दूसरी हेमामालिनी नहीं बना पाएगी।

हेमा मालिनी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू की।वे 1999 में  विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) से भाजपा प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में शामिल हुईं। खुश होकर भाजपा ने हेमा जी को वर्ष 2003 मे राज्यसभा की सांसद चुनी गईं और 2009 तक उच्च सदन की सदस्य रही।

हेमा जी को 2014 भाजपा ने उन्हें उत्तर प्रदेश के मथुरा संसदीय क्षेत्र से  अपना प्रत्याशी बनाया।उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के नेता जयंत चौधरी को हराकर चुनाव जीता।2019 और 2024 में भी उन्होंने मथुरा से भारी बहुमत से जीत दर्ज की और दोबारा लोकसभा पहुँचीं।

मेरा मकसद कंगना और हेमामालिनी की तुलना करना नहीं है लेकिन जिस तरह से वे राजनीति में अपना तमाशा बना रहीं है उसे देखकर मुझे उनके प्रति सहानुभूति है. वे समय रहते या तो हेमामालिनी से गुरुदीक्षा ले लें अन्यथा बेवफा राजनीति उन्हें कहीं का नहीं छोडेगी. उन्हे हमेशा अपना गाल सहलाते रहना चाहिए. क्योंकि जो थप्पड़ उनके गाल पर पडा था वो दर असल उनके लिए था ही नहीं था. वे तो खामखां निशाने पर आ गई. वो थप्पड़ जिसके नाम का था वो बेहद सुरक्षित घेरे में रहने वाले लोग हैं. सुधर जाओ कंगना बेटा।


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