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बासी कढी में फिर उफान

@राकेश अचल (ग्वालियर):- 


न हंसिए न झुंझलाइए, केवल मुस्कराइए, क्योंकि एक पुरानी कहावत फिर चरितार्थ होने जा रही है. कहावत है-'बासी कढी मे उफान 'इसे मुहावरा भी कहा जाता है. दर असल खबर रालेगण सिद्धि से आई है. खबर है कि गांधी टोपी वाले अन्ना हजारे एक बार फिर आमरण अनशन करने जा रहे हैं.

अहमदनगर के रालेगणसिद्धी में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने एक बार फिर महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू करने की घोषणा कर दी है. हजारे ने कहा कि वे 30 जनवरी से आमरण अनशन पर बैठेंगे. उनका कहना है कि इस बार यह आंदोलन आखिरी होगा.उन्होंने साफ कहा कि सरकार लोकायुक्त कानून लागू करे, जो जनता की भलाई के लिए बेहद जरूरी है.

अन्ना हजारे आजादी के बाद जनमानस को आंदोलित करने वाले मौजूदा समय के आखरी व्यक्ति हैं,किंतु उनका प्रेरक जीवन बादश् में हास्यास्पद बन गया. अब 88 साल की उम्र में आमरण अनशन की घोषणा करने वाले इस दुस्साहस को बासी कढी में उफान न कहें तो क्या कहा जाए?

देश में आपातकाल के समय जनांदोलन के नायक जय प्रकाश नारायण बने थे. जेपी के आंदोलन की वजह से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की सत्ता गयी थी. जेपी के बाद अन्ना हजारे ने  भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आंदोलन किया उससे अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह की सत्ता डांवाडोल हो गई थी. जेपी और अन्ना आंदोलन से देश को कुछ मिला हो या न मिला हो किंतु नये नेता और नया राजनीतिक दल जरूर मिला. जेपी आंदोलन के बाद जनता पार्टी जन्मी थी. अन्ना आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी.

आपको याद दिला दूं कि लंबी खामोशी के बाद आमरण अनशन का ऐलान करने वाले अन्ना हजारे ने नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी महाराष्ट्र के आंदोलन को 5 अप्रैल 2011को दिल्ली ले आए थे. ये आंदोलन  जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ अखिल भारतीय बन गया था. जिनमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी किरण बेदी, प्रसिद्ध लोकधर्मी वकील प्रशांत भूषण, आदि शामिल थे। 

अन्ना के इस आंदोलन को राष्ट्रव्यापी समर्थन मिला. पहली बार देश और दुनिया ने सोशल मीडिया की ताकत देखी थी. अन्ना के समर्थन में लोग सड़कों पर  उतरने लगे थे.इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था।  इस अनशन के आंदोलन का रूप लेने पर भारत सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और 16 अगस्त तक संसद में लोकपाल विधेयक पारित कराने की बात स्वीकार कर ली थी ।  बाद में जो हुआ वो एक अलग इतिहास है.

अन्ना हजारे को एक बार फिर फिर लोकायुक्त याद आ गया है. लंबी शीतननिंद्रा से जागे अन्ना नने महाराष्ट्र सरकार को   याद दिलाया कि 2022 में भी उन्होंने लोकायुक्त कानून की मांग को लेकर रालेगणसिद्धी में अनशन किया था. उस समय मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय कृषि मंत्री ने हस्तक्षेप करके उन्हें अनशन खत्म कराया था. उस दौरान फडणवीस सरकार ने समिति गठित कर कानून का ड्राफ्ट भी तैयार किया था. दोनों सदनों में कानून पास होने के बाद फाइल राष्ट्रपति के पास भेजी गई थी.

बेचारे अन्ना के मन में टीस है कि उनके अनशन के बावजूद आज तक यह कानून लागू नहीं हुआ, जिस पर हजारे ने नाराजगी जताई. उन्होंने बताया कि उन्होंने सात बार देवेंद्र फडणवीस को चिट्ठी लिखकर इस मुद्दे पर जवाब मांगा, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. हजारे का कहना है कि अगर कानून जनता के हित का है तो सरकार को इसे लागू करने में देरी क्यों हो रही है? पत्रकारों से बात करते हुए अन्ना हजारे ने साफ कहा कि सरकार जनता की भलाई के लिए होती है, सिर्फ दिखावे के लिए नहीं. उन्होंने कहा कि लोकायुक्त कानून लोगों की भलाई के लिए बेहद जरूरी है, इसलिए वे 30 जनवरी से आमरण अनशन करेंगे.

सवाल ये है कि क्या इस बार अन्ना को पहले जैसा समर्थन मिलेगा? क्योंकि पहले उन्होंने आंदोलन किया था तब देश में सहृदय डॉ मनमोहन सिंह की सरकार थी, लेकिन अब महाराष्ट्र और राष्ट्र में एकमेव भाजपा की सरकार है जो हर आंदोलन और आंदोलनकारी को कुचलना जानती है. लद्दाख में जन आंदोलन करने वाले लद्दाख के अन्ना सोनम वांग्चुक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानकर सरकार ने एन एस ए के तहत जेल में डाल रखे हैं. ऐसी निष्ठुर सरकार क्या अन्ना हजारे को आमरण अनशन करने पर बख्श देगी? 

अन्ना हजारे पद्मभूषण हैं. उन्होने फूल भी बेचे और मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर भी रहे. अविवाहित हैं. अपना सब कुछ दान दे चुके हैं सफलता, असफलता सब देख चुके हैं लेकिन थके नहीं हैं. अब सवाल यही है कि क्या राष्ट्र और महाराष्ट्र की सरकार उन्हे सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ बासी कढी की तरह उफनने की इजाजत देगी?


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